यह गीत उस रचनाकार का है, जिसे सुनकर आम जनता ही नहीं, बल्कि 1963 ई. में भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू तक की आँखें डबडबा गयीं थी। इस गीत को लाल किले पर सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ दी थी। हालांकि यह गीत किसी फ़िल्म का नहीं है, लेकिन फिर भी गणतन्त्र एवं स्वतन्त्रता दिवस पर तो इस गीत के साथ - साथ इस रचनाकार के लिखे अन्य गीत भी चारों ओर गूंजते रहते हैं।
"ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी।"
यह गीत उस रचनाकार का है, जिसे सुनकर आम जनता ही नहीं, बल्कि 1963 ई. में भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू तक की आँखें डबडबा गयीं थी। इस गीत को लाल किले पर सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ दी थी। हालांकि यह गीत किसी फ़िल्म का नहीं है, लेकिन फिर भी गणतन्त्र एवं स्वतन्त्रता दिवस पर तो इस गीत के साथ - साथ इस रचनाकार के लिखे अन्य गीत भी चारों ओर गूंजते रहते हैं।
ऐसे गीतों के रचनाकार थे - कवि प्रदीप। जब - जब हम उनके गीत सुनेंगे, तब - तब न सिर्फ उनकी याद ताज़ा हो जाएगी। देश, कवि प्रदीप जी का योगदान शायद कभी भुला नहीं सकता, क्योंकि उन्होंने अपने जोशीले और दिल को छू लेने वाले गीतों के माध्यम से देशप्रेम की जो भावना जगायी, वैसा कोई शायद ही कर पाता।
कवि प्रदीप जी का मूल नाम रामचन्द्र नारायण द्विवेदी था। उनका जन्म 6 फरवरी, सन 1915 ई. को मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के "बड़नगर" नामक कस्बे में हुआ था। इलाहाबाद विश्व विद्यालय से डिग्री लेने के बाद सन 1938 ई. में वे मुम्बई चले गये। वहाँ हिमांशु राय उनकी कविताओं से बेहद प्रभावित हुए। हिमांशु राय ने ही उनका नाम "प्रदीप" रखा। उनके अनुरोध पर प्रदीप जी ने बॉम्बे टाकीज़ की फिल्म 'कंगन' के लिए पहली बार न केवल गीत लिखे, बल्कि कुछ गीतों को अपनी आवाज़ भी दी। 'कंगन' फिल्म ने सिल्वर जुबली मनायी। इसके बाद तो उनकी एक के बाद एक फ़िल्में आती रही 'बंधन', 'पुनर्मिलन', 'नया संसार', 'झूला', 'किस्मत' जैसी फिल्मों से न केवल प्रदीप की किस्मत चमकी, बल्कि वे लोकप्रियता के चरम शिखर तक पहुँच गए। 'किस्मत' साढ़े तीन साल तक परदे पर धूम मचाती रही और उसका गीत "दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दोस्तान हमारा है" काफी लोकप्रिय हुआ।
चल चल रे नौजवान चल ……, देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान ......., चल अकेला चल अकेला ……, चल उड़ जा रे पंछी ...., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें ……, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ……, पिंजरे के पंछी रे ….... आदि कालजयी गीत प्रदीप जी की कलम से ही निकले। आजादी के बाद सबसे पहले प्रदीप जी ने ही, "कहनी है एक बात हमें इस देश के पहरेदारों से, संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से" लिखकर राष्ट्र को सचेत किया था। आठवें दशक में 'जय संतोषी माँ' उनके कैरियर की आखिरी हिट फिल्म थी, जिसका गीत "यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ ....... अपनी संतोषी माँ" बेहद लोकप्रिय हुआ था। कवि प्रदीप जी ने करीब अस्सी फिल्मों के लिए गीत लिखे, जिनमें लगभग सभी गीत लोकप्रिय हुए। 1961 ई. में कवि प्रदीप जी को "श्रेष्ठ गीतकार" के अलावा "संगीत नाटक अकादमी अवार्ड" भी मिला। मध्य प्रदेश सरकार ने हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए विशेष पुरस्कार दिया। उन्हें "सुरसंगम अवार्ड" भी मिला। कवि प्रदीप जी को अपने निधन (11 दिसम्बर, सन 1998 ई.) से तीन माह पहले ही वर्ष 1997 के प्रतिष्ठित "दादा साहेब फाल्के पुरस्कार" से सम्मानित किया गया था। हिन्दी फिल्म के साथ - साथ हिन्दी साहित्य भी कवि प्रदीप का योगदान शायद कभी नहीं भुला सकेगा।
जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी।"
यह गीत उस रचनाकार का है, जिसे सुनकर आम जनता ही नहीं, बल्कि 1963 ई. में भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू तक की आँखें डबडबा गयीं थी। इस गीत को लाल किले पर सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ दी थी। हालांकि यह गीत किसी फ़िल्म का नहीं है, लेकिन फिर भी गणतन्त्र एवं स्वतन्त्रता दिवस पर तो इस गीत के साथ - साथ इस रचनाकार के लिखे अन्य गीत भी चारों ओर गूंजते रहते हैं।
ऐसे गीतों के रचनाकार थे - कवि प्रदीप। जब - जब हम उनके गीत सुनेंगे, तब - तब न सिर्फ उनकी याद ताज़ा हो जाएगी। देश, कवि प्रदीप जी का योगदान शायद कभी भुला नहीं सकता, क्योंकि उन्होंने अपने जोशीले और दिल को छू लेने वाले गीतों के माध्यम से देशप्रेम की जो भावना जगायी, वैसा कोई शायद ही कर पाता।
कवि प्रदीप जी का मूल नाम रामचन्द्र नारायण द्विवेदी था। उनका जन्म 6 फरवरी, सन 1915 ई. को मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के "बड़नगर" नामक कस्बे में हुआ था। इलाहाबाद विश्व विद्यालय से डिग्री लेने के बाद सन 1938 ई. में वे मुम्बई चले गये। वहाँ हिमांशु राय उनकी कविताओं से बेहद प्रभावित हुए। हिमांशु राय ने ही उनका नाम "प्रदीप" रखा। उनके अनुरोध पर प्रदीप जी ने बॉम्बे टाकीज़ की फिल्म 'कंगन' के लिए पहली बार न केवल गीत लिखे, बल्कि कुछ गीतों को अपनी आवाज़ भी दी। 'कंगन' फिल्म ने सिल्वर जुबली मनायी। इसके बाद तो उनकी एक के बाद एक फ़िल्में आती रही 'बंधन', 'पुनर्मिलन', 'नया संसार', 'झूला', 'किस्मत' जैसी फिल्मों से न केवल प्रदीप की किस्मत चमकी, बल्कि वे लोकप्रियता के चरम शिखर तक पहुँच गए। 'किस्मत' साढ़े तीन साल तक परदे पर धूम मचाती रही और उसका गीत "दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दोस्तान हमारा है" काफी लोकप्रिय हुआ।
चल चल रे नौजवान चल ……, देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान ......., चल अकेला चल अकेला ……, चल उड़ जा रे पंछी ...., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें ……, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ……, पिंजरे के पंछी रे ….... आदि कालजयी गीत प्रदीप जी की कलम से ही निकले। आजादी के बाद सबसे पहले प्रदीप जी ने ही, "कहनी है एक बात हमें इस देश के पहरेदारों से, संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से" लिखकर राष्ट्र को सचेत किया था। आठवें दशक में 'जय संतोषी माँ' उनके कैरियर की आखिरी हिट फिल्म थी, जिसका गीत "यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ ....... अपनी संतोषी माँ" बेहद लोकप्रिय हुआ था। कवि प्रदीप जी ने करीब अस्सी फिल्मों के लिए गीत लिखे, जिनमें लगभग सभी गीत लोकप्रिय हुए। 1961 ई. में कवि प्रदीप जी को "श्रेष्ठ गीतकार" के अलावा "संगीत नाटक अकादमी अवार्ड" भी मिला। मध्य प्रदेश सरकार ने हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए विशेष पुरस्कार दिया। उन्हें "सुरसंगम अवार्ड" भी मिला। कवि प्रदीप जी को अपने निधन (11 दिसम्बर, सन 1998 ई.) से तीन माह पहले ही वर्ष 1997 के प्रतिष्ठित "दादा साहेब फाल्के पुरस्कार" से सम्मानित किया गया था। हिन्दी फिल्म के साथ - साथ हिन्दी साहित्य भी कवि प्रदीप का योगदान शायद कभी नहीं भुला सकेगा।
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